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कागज़ का कोरा रह जाना कोई सिरा न मिल पाना खुला आसमा

कागज़ का कोरा रह जाना
कोई सिरा न मिल पाना
खुला आसमां तककर भी
जी का अब न लग पाना
लंबी लंबी बातें जब 
छोटी सी हो जाएं
फिर मन मे जो कुछ उमड़ रहा
शब्दों में न कह पाना
ख़ुद को पा लेती थी दुनिया 
उसके लिखे लफ़्ज़ों में
सारे उन लफ़्ज़ों का
दुनिया में ही खो जाना
मानस के सारे तागे
आपस में उलझे उलझे हों
और रात भर जग जगकर
इक उलझी रुह को सुलझाना
ख़ुद अपने से ही खुद का मन
अगर रूठकर बैठा हो
जो बातें दिल को भाती थी
अब मना मना के  
उन बातों का भी थक जाना
जब दुनिया खोजे पहले जैसा 
अंदर उसके वो पागलपन
पर दिल के रेगिस्तानों में
उसका प्यासा ही दब जाना
कितना ख़ौफ़नाक है न
इक कवि के मन का मर जाना.. कागज़ का कोरा रह जाना
कोई सिरा न मिल पाना
खुला आसमां तककर भी
जी का अब न लग पाना
लंबी लंबी बातें जब 
छोटी सी हो जाएं
फिर मन मे जो कुछ उमड़ रहा
शब्दों में न कह पाना
कागज़ का कोरा रह जाना
कोई सिरा न मिल पाना
खुला आसमां तककर भी
जी का अब न लग पाना
लंबी लंबी बातें जब 
छोटी सी हो जाएं
फिर मन मे जो कुछ उमड़ रहा
शब्दों में न कह पाना
ख़ुद को पा लेती थी दुनिया 
उसके लिखे लफ़्ज़ों में
सारे उन लफ़्ज़ों का
दुनिया में ही खो जाना
मानस के सारे तागे
आपस में उलझे उलझे हों
और रात भर जग जगकर
इक उलझी रुह को सुलझाना
ख़ुद अपने से ही खुद का मन
अगर रूठकर बैठा हो
जो बातें दिल को भाती थी
अब मना मना के  
उन बातों का भी थक जाना
जब दुनिया खोजे पहले जैसा 
अंदर उसके वो पागलपन
पर दिल के रेगिस्तानों में
उसका प्यासा ही दब जाना
कितना ख़ौफ़नाक है न
इक कवि के मन का मर जाना.. कागज़ का कोरा रह जाना
कोई सिरा न मिल पाना
खुला आसमां तककर भी
जी का अब न लग पाना
लंबी लंबी बातें जब 
छोटी सी हो जाएं
फिर मन मे जो कुछ उमड़ रहा
शब्दों में न कह पाना