सपनो की तलाश में दूर ये शहर आते हैं जाने कैसे ये छोड़कर अपना घर आते हैं चारों ओर एक रेस लगी है अव्वल आने की इसी रेस में सारे बच्चे उतर जाते हैं हर माँ बाप का तो एक ही सपना होता है जिसके लिए इनके खुद के सपने बिखर जाते है मां की ममता पिता का प्यार दोस्त यार जाने कैसे ये बचपन वाला घर बिसर आते हैं अब खेलकूद वाला ज़माना ही नही रहा साहब किताबो के पन्ने में तो बचपन गुज़र जाते हैं दिनोंदिन गहराता जा रहा किताबो का समंदर आये दिन ये राही इसमें डूबकर मर जाते है दहाई उम्र होते ही घर चलाना सीख लेते हैं अच्छी बात है न जल्दी ये बच्चे सुधर जाते है इतना आसान कहाँ होता है सपनो को कैद करना हर सफर के अंत में ये एक नया सफर पाते हैं भूल जाते हैं घर की स्विच और बिस्तर अक्सर लौटकर जब ये मुसाफिर अपने घर जाते हैं _shivendra