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लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में किसकी बनी है

लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में 
किसकी बनी है आलमे- नापायदार में 
बुलबुल को बाग़मा से न सैयाद से गिला 
किस्मत में कैद लिखी थी, फसले बहार में 
इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसे 
इतनी जगह कहां है दिले- दागदार में 
ईक शाखे- गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमा 
कांटे बिछा दिए हैं दिले -लालहजार में 
उम्रे-दराज मांग के लाए थे चार दिन 
दो आरजू में कट गए तो इंतजार में 
दिन जिंदगी के खत्म हुए शाम हो गई 
फैला के पांव सोएंगे कुंजे-मजार में 
कितना है बदनसीब जफर दफन के लिए 
दो गज जमीन भी ना मिली कुएं-यार में
      
                             -बहादुर शाह ज़फ़र

©Deeksha Pilania
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