क्या हुआ ! उनके मज़ाक से डर गया क्या? कदम तो उठे हैं तेरे,पर यूँ पीठ दिखाने को क्या? शेर भी मारने से पहले एक बार तो दहाड़ता है, उसकी छोड़, तू तो ज़िंदा है और सांसे ले रहा है।। बात मारने पे आ ही गयी है तो जा मरजा..... पर मारने से पहले कुछ तो बड़ा कर जा, कुछ ऐसा जिससे तू भीड़ में भी अलग पहचाना जाए, तेरा नाम फलक पे हो और तेरी गाथा बुलन्दी गए।। सांसे चल रही है तेरी चल शुक्र मना..... फिर उठ और बाढ़ तोड़ दे चल बनजा ऐसा चना, ज़िन्दा है और कोशिश नही की तो मेरे बराबर, चल उठ और दहाड़! अपनी मुशीबतों को हरा कर।। अरे! अपने डर की ओर सीना तो कर.... वो खुद-ब-खुद डर जाएगा, जो एक बार कदम उठे तेरे तो तू अपनी ही ढाल बन जाएगा....... कोई ऐसी हवा नही है जो तुझसे टकराकर चूर नहीं होगी, जो हौंसला बांध लें एक बार, फिर कोई मंज़िल दूर नही होगी।। अपनी बेड़ियो को देख कर यूँ हताश न हो, जो रास्ता न दिखे तो निराश न हो, जिसपे तेरा नाम है वो दाना तेरा होगा, कि मशाल तो थाम, उसी से दूर अंधेरा होगा।। अपनी मंज़िल और औकात देख के कदम क्यों डगमगाए तेरे.... याद रख औकात होती नही किसी की मकाम पे पहुंचने से पहले, जीत कर अपनी औकात सबको दिखा देना..... फिलहाल अपनी नाकामियो से उठ और छोड़ दे रोना।। first Hindi poem