आज फिर रुक के सोचता हूँ तो वो तस्वीर फिर नज़र आती है, जब तू साड़ी पहने, बाल समेटे अपने, बंधा-कसा सा जुड़ा बनाए, खिड़की के पास बैठी हो लिये किताब हाथ में, सूरज की छटती किरणें गिरती हो चेहरे पे तेरे, हल्का सा परदा गिराये, मधुर संगीत की ध्वनि, एकांत को पास बिठाये, एकाकी में भी तू सहज सब पा जाती थी, कैसे ना जानें कलम और किताबों में इक अलग दुनिया बसाती थी, वो मंद मुस्कान कुछ पढ़ते हुए, कभी ज़रा गम्भीर चेहरा तेरा, कभी खिलखिला के हँस देना, कुछ पढ़ते पढ़ते, जैसे किताबों में तू कुछ देख पाई, कितना सुकून था तेरी उस दुनिया में आज बैठ कर सोचता हूँ, और यहाँ!!!! इक कोलाहल है,शोर है चारों ओर, गाड़ियो का सायरन,कहीं लोगों की बहस, कहीं घर की लड़ाई, शुकून और शान्ति शायद मुझें तलाश ही ना पाई, काश!!!तेरी दुनिया सी मेरी भी दुनिया होती सुकून भरी, वो सूरज की छटती किरणें कभी तो होती मेरी भी।।।। ©Neelam bhola सुकून भरी दुनिया तेरी