वो एक खूबसूरत शाम थी, जब वो मेरे क़रीब थी। उसमें ही खोया रहता था, वो मेरी जहनसीब थीं। उसकी मीठी बोली जब भी, मेरे कानों में पड़ती थी। दिल को मेरे मोह लेती थी, वो मेरी ही हबीब थी। मैं था उसका साहिल, मेरे बाँहों में उसकी रहगुज़र थी। कोई हमें जुदा ना कर सका, वो मेरे इतने करीब थी। साथ लिखा था ताउम्र हमारा, इश्क़ की जागीर थी। ख़ुदा ने उसे मेरा बनाया, वो मेरी ही नसीब थी। मेरी साँसें उससे बँधी थी, मजबूत वो ज़ंज़ीर थी। जिस डोर से बंधे थे दोनों, वो किस्मत की लक़ीर थी। वो एक खूबसूरत शाम थी, जब वो मेरे क़रीब थी। उसमें ही खोया रहता था, वो मेरी जहनसीब थीं। ♥️ Challenge-590 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।