एक अनोखी सुहागरात छोटी थी ,गुड़ियों से खेलती थी ,चहकती थी ,मचलती थी, अल्हड़ , जिद्दी रूठती थी ,ना जाने वह कितना ठुनकती थी।। सहसा एक तूफान आ गया,बिन बुलाए बरसात आ गया , अच्छा रिश्ता देखकर मां ने ,कलेजे में पत्थर रख लिया, खेलती कूदती गुड़िया को,आंचल से विदा कर दिया।। बहुत डरी थी ,सहमी थी ,चुनर ओढ़ कर बैठी थी , सहसा आहट से चौकन्नी हुई थी,आंखें मूंद प्रार्थना बुदबुदाती थी।। उसने उसकी चेहरे की,भावना को पढ़ा था , हृदय की शंका और डर को क्या खूब भांपा था।। उसके माथे पर प्यार से,चुंबन भरा था , सो जाओ बहुत थकी होगी ,ऐसा कहा था ।। बिना दैहिक आकर्षण के,निर्मल गंगाजल सा पावन , प्रेम वे बहाते रहे,उसे सर्वस्व अपना बनाते रहे ।। वह बनती गई ,उनके त्याग की पूजारन , अल्हड़ बच्ची से,धीरे-धीरे उनकी सुहागन।। - अंशु प्रिया एक अनोखी सुहागरात