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एक आह उभरी तो कविता कही गई एक आहा पर

एक  आह   उभरी  तो   कविता   कही   गई 
एक   आहा  पर   भी    हैं    कविताएं   कई 

एक  मिसरा   ग़म - ए - हिज्र  कहता  है  तो 
एक  मिसरे में  हैं वस्ल  की  संभावनाएं कई 

एक ख़्वाब को सुलाया  तो  दूजा  जाग उठा 
एक   कल्ब   में   हैं   समाई   आशाएं   कई 

राब्ता  मेरा   मुझसे  भी   ना  रहा   अब  तो 
कि  कर चुका हूँ  मैं  अब  तक  खताएं  कई 

एक बार भी नहीं  पलटा  सितमगर जो गया 
एक मैं हूँ जो देता हूँ रोज़ ही उसे सदाएं कई

©Prashant Shakun "कातिब" #एक_आह_उभरी_तो #ग़ज़ल #प्रशान्त_की_ग़ज़ल #बातें_ज़िन्दगी_की  #एक_अधूरी_ग़ज़ल #pshakunquotes #pशकुन  #प्रशांत_शकुन_कातिब
एक  आह   उभरी  तो   कविता   कही   गई 
एक   आहा  पर   भी    हैं    कविताएं   कई 

एक  मिसरा   ग़म - ए - हिज्र  कहता  है  तो 
एक  मिसरे में  हैं वस्ल  की  संभावनाएं कई 

एक ख़्वाब को सुलाया  तो  दूजा  जाग उठा 
एक   कल्ब   में   हैं   समाई   आशाएं   कई 

राब्ता  मेरा   मुझसे  भी   ना  रहा   अब  तो 
कि  कर चुका हूँ  मैं  अब  तक  खताएं  कई 

एक बार भी नहीं  पलटा  सितमगर जो गया 
एक मैं हूँ जो देता हूँ रोज़ ही उसे सदाएं कई

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