परीशाँ होके मेरी खाक आखिर दिल न बन जाये जो मुश्किल अब हे या रब फिर वही मुश्किल न बन जाये न करदें मुझको मज़बूरे नवा फिरदौस में हूरें मेरा सोज़े दरूं फिर गर्मीए महेफिल न बन जाये कभी छोडी हूई मज़िलभी याद आती है राही को खटक सी है जो सीने में गमें मंज़िल न बन जाये कहीं इस आलमें बे रंगो बूमें भी तलब मेरी वही अफसाना दुन्याए महमिल न बन जाये अरूज़े आदमे खाकी से अनजुम सहमे जातें है कि ये टूटा हुआ तारा महे कामिल न बन जा ©Neelam Modanwal #RoadTrip official Anil Ray