कठिन हुआ है जीवन जीना, स्वपन हुए बेकार कोई तो बतादो अच्छे दिन ,कब आएंगे सरकार राशन महंगा सब्जी महंगी ,पेट्रोल चौराशी पार कोई तो बतादो अच्छे दिन ,कब आएंगे सरकार पढ़ लिखकर क्या करे नोजवां ,डिग्री बनी जंजाल रोजगार की आस में भटकत, युवा हुआ बेहाल रिश्वतखोरी सुरसा बनकर ,खड़ी हमे है खाने ऊपर से नीचे तक ,अब तो सब लगे हमे सताने कैसे हम एक सुखद भविष्य का, सपना आंखों में पालें महंगाई डायन बनगई, इससे अब कोई हमे बचाले अच्छे दिन आने वाले है, सुना था हमने नारा चार बरस तो बीत गए ,अब तक न लगा किनारा ये कैसे अच्छे दिन है भैया ,कोई तो हमे समझादो न चाहूँ अच्छे दिन, मुझे मेरे बुरे दिन फिर लौटादो वो बुरा वक्त ही सही था ,जिसमे जीवन तो जी लेते थे रूखी सूखी ही खाकर के ,दो पल तो चैन के जीते थे सौ रुपया की सब्जी में ,पूरा थैला तो भर जाता था महगाई रूपी डायन का, भय ज्यादा नही सताता था अब तो सौ रुपया में केवल ,आलू ही हम ला पाते हैं गर सब्जी बनी हो भोजन में, तो दाल नही बनाते हैं घर का राशन ही लाने में, पूरा पैसा लग जाता है मेहमान को घर आ देखें तो ,तन मन थर्रा सा जाता है पैसा सोडियम से हल्का हुआ ,झट आया और उड़ जाता है क्या खाएं और बचाये क्या ,ये समझ हमे न आता है महंगाई मारने होगा क्या, भगवान का अब अवतार मेरे अच्छे दिन कब आएंगे ,जागो मेरी सरकार| #अच्छेदिन#सपना#महंगाई