कहीं पीपल पर मन्नतो में बंधे है, कुछ अधूरे इश्क़। कहीं शाखो पर अधफुले-अधपके से लटक रहे हैं कुछ अधूरे इश्क़। देखो कहीं नदी में डूब रहे कहीं तर रहे हैं कुछ अधुरे इश्क़। कहीं झूलो पर , कहीं फंदो पर झूल रहे हैं कुछ अधूरे इश्क़। मिटटी में दफन हुए कई खाक हुए हैं, कुछ अधुरे इश्क। कभी-कभी सपनों में पूरे हुए है कुछ अधूरे इश्क़। कवियो की अधूरी कलम से निकलते कुछ अधूरे इश्क़। *कुछ अधुरे इश्क* कहीं पीपल पर मन्नतो में बंधे है, कुछ अधूरे इश्क़। कहीं शाखो पर अधफुले-अधपके से लटक रहे हैं कुछ अधूरे इश्क़।