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मानव एक रूप अनेक दोहरे जीवन की कहानी एक मानवता निः

मानव एक रूप अनेक
दोहरे जीवन की कहानी एक
मानवता निःशब्द हो गए
अंतर्मन निष्प्राण से थे
छल कपट से लिप्त हुआ
वेष अनगिनत अनेक हुआ 
मलिन मन अपशब्द से थे
अंतर्मन आघात विचलित से थे
मानव जीवन अब व्यथित हो गया
नर से नारायण की बात कथित से थे..

©Preeti jaiswal..Vijjy
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