मज़हबों के कीचड़ों में सन कर नहीं चलते 'इंसान' कभी मज़हबी बन कर नहीं चलते बड़ा गूरूर था हमें अपनी शख्शियत पर जब से सच सुना है यूँ तन कर नहीं चलते #इंसान #सच #कृतज्ञता