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"परिवार" हमारे पूर्व कर्मों का प्रतिफ़ल घर म

"परिवार"

हमारे पूर्व कर्मों का प्रतिफ़ल





 घर में ही धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की सिद्धि का आधार तैयार होता है। मोक्ष को बाहर जाकर प्राप्त करने में वर्षो लग जाते हैं। घर से मोक्ष का द्वार सबसे नजदीक होता है। दिखाई तो इसलिए नहीं देता कि व्यक्ति आज की जीवन शैली में गृहस्थाश्रम से बाहर ही नहीं जीना चाहता। वानप्रस्थ और संन्यास दोनों ही भोग संस्कृति की भेंट चढ़ गए। विद्या(धर्म, ज्ञान, वैराग्य, ऎश्वर्य) के अभाव में अविद्या (अविद्या, अस्मिता, राग-द्वेष (आसक्ति), अभिनिवेश) ने अपना जाल फैलाकर सबको पशुभाव में ही (आहार-निद्रा-भय-मैथुन) जकड़ लिया।

 

समय के साथ मर्यादा और लज्जा भी विदा होने लगे। अंहकार और ममकार परिवार में हावी हो गए हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्र्या जैसे असुर भी प्रारब्ध से साथ ही आए होते हैं। तब हर सदस्य अलग-अलग मुखौटे लगाकर एक दूसरे से व्यवहार करते हैं। यही माया का स्वरूप है। व्यक्ति हर सदस्य से अलग तरह का व्यवहार करता है। पिछले कर्म-फल भोगने के कारण। न तो किसी  को अपना सही स्वरूप पता होता है, न दूसरे का सही स्वरूप, मुखौटे के कारण, जान पाते हैं। केवल अच्छे संस्कार ही व्यक्ति को सही ज्ञान तक पहुंचा सकते हैं।
"परिवार"

हमारे पूर्व कर्मों का प्रतिफ़ल





 घर में ही धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की सिद्धि का आधार तैयार होता है। मोक्ष को बाहर जाकर प्राप्त करने में वर्षो लग जाते हैं। घर से मोक्ष का द्वार सबसे नजदीक होता है। दिखाई तो इसलिए नहीं देता कि व्यक्ति आज की जीवन शैली में गृहस्थाश्रम से बाहर ही नहीं जीना चाहता। वानप्रस्थ और संन्यास दोनों ही भोग संस्कृति की भेंट चढ़ गए। विद्या(धर्म, ज्ञान, वैराग्य, ऎश्वर्य) के अभाव में अविद्या (अविद्या, अस्मिता, राग-द्वेष (आसक्ति), अभिनिवेश) ने अपना जाल फैलाकर सबको पशुभाव में ही (आहार-निद्रा-भय-मैथुन) जकड़ लिया।

 

समय के साथ मर्यादा और लज्जा भी विदा होने लगे। अंहकार और ममकार परिवार में हावी हो गए हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्र्या जैसे असुर भी प्रारब्ध से साथ ही आए होते हैं। तब हर सदस्य अलग-अलग मुखौटे लगाकर एक दूसरे से व्यवहार करते हैं। यही माया का स्वरूप है। व्यक्ति हर सदस्य से अलग तरह का व्यवहार करता है। पिछले कर्म-फल भोगने के कारण। न तो किसी  को अपना सही स्वरूप पता होता है, न दूसरे का सही स्वरूप, मुखौटे के कारण, जान पाते हैं। केवल अच्छे संस्कार ही व्यक्ति को सही ज्ञान तक पहुंचा सकते हैं।