आज यूं ही महफ़िल मे बैठे थे, ज़रा थे हम सैहमे से। होंटों पर हँसी आँखे नम, आँखों पे काले चश्मे पहने थे। गोल घेरे में बैठे थे, कुछ दोस्त महफ़िल के गैहने थे। कर हसीं महफ़िल को, गुज़ारिश मुझसे करते थे। हर ग़ज़ल डरते-डरते कहते थे, ज़िक्र न हो तेरा सैहमे से रहते थे। कोशिश की तन्हा शायर ने ज़िक्र तेरा न हो, मगर मेरी हर ग़ज़ल मे तेरे ही नाम के पैहरे थे। ©Ek tannha shayar #standAlone prashu pandey vijeta swami