मैं जिद्दी हूँ बहुत तूफ़ान से, दीपक जलाती हूँ खुद अपने ही हाथ से दावत, हवा को देके आती हूँ शिकायत पर शिकायत के, पुलिंदे ढेर है लेकिन तुम्हारे पास आकर, एकदम सब भूल जाती हूँ मुकद्दर से ही हिस्से में, तुम्हारे आ गयी वरना नहीं तो हाथ से लोगों के, आ के छूट जाती हूँ जहाँ लिखी हो बेहद, प्यार या अख़लाक़ की बातें सफ़े वो ही किताबों में, क़रीने सजातीं हूँ यहाँ हर किस्म का, इंसान मिलता होगा बस्ती में जिसे मैं ढूंढने निकली, ना उसको ढूंढ पाती हूँ मुझे सब एक जैसी, शकल-सूरत के ही दिखते है मैं जिस भी गांव, जिस भी शहर से होके आती हूँ मेरे खामोश रहने का, ना मतलब कुछ लगा लेना मैं जो भी चाहती कहना, वो सब खुल कर बताती हूँ.. #pyaar #zidd #aklaakh #tufaan #deepak #kitaben #hindi #poetry