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मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ, वो ग़ज़ल आपको सुनाता हू

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ,
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ,
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ ।

तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ ,
हर तरफ़ ऐतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ ।

एक बाज़ू उखड़ गया जबसे
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ ,
मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ ।

कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ ।

Diw@kar
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ,
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ,
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ ।

तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ ,
हर तरफ़ ऐतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ ।

एक बाज़ू उखड़ गया जबसे
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ ,
मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ ।

कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ ।

Diw@kar
divakarsoni4407

Diw@kar Soni

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