बन सके अगर मेरी कलम़ वस्त्र तेरा ए द्रोपदी मैं कलम को वस्त्र बनाने को तैयार हूँ, अल्फाजो़ं में आक्रोश भर अगर तुझे न्याय मिलता है तो हर लफ्ज़ को क्रोधित करने को तैयार हूँ, युधिष्ठिर सा विनम्र नही मै भीम सा उतावला हूँ अपने अंजाम कि मुझे फिक्र नही,भरी सभा में दुष्टों का सर्वनाश करने वाला हूँ, कब तक याद करोगी द्वारिकाधीश को कब अर्जुन गांडिव पर प्रत्यंचा चढा़येंगे, कलयुग है यह द्रौपदी यहां कौरव राज है पांडव तेरी लाज़ बचाने अब ना आयेंगे, दांव पर रखा जाये तुझे कभी शराब की बोलत खातिर तो कभी जिस्म़ की भूख मिटाने खातिर, खप्पर वाली का रूप धर ए नारी तू अब स्वयं संहार कर रणचंण्डी़ का अवतार धर कर तू दैत्यों के रक्त से स्नान कर, दुर्गा बन तू ,शक्ति बन अब तू स्वयं फिर हैवानों का सर्वनाश कर...!! -@आक्रोश(#स्वीकार) Deepika Pareek