खौफ़ में बीती कितनी रातें जितने मुँह उतनी ही बातें जाने क्या हो सकता है जाने क्या हो जायेगा हर पल यह अनुमान लगाते कभी इस कोने कभी उस कोने इक-दूजे से खुद को छिपाते इक-दूजे को देख हँसते गुम आवाज़ों में सब रोते एक खबर पे खिलते चेहरे एक खबर पे मन बैठा जाए अनहोनी की आशंका पर सब मन में रखें मन की बातें इक बार जरा सी आँखें खोले हमसब से कुछ भी तो बोले आपस में सब सोच सोच कर अपना-अपना मन बहलाते .......... 07.04.2010 #खौफ़_की_रातें #अम्मा