दुनिया को देखता हूं मैं किसी की नजरों से अपनी नजरें तो यहीं धंसी पड़ी है जागी थी दुनिया अंगड़ाई लेते हुए सी रही थी एक फटी कमीज को एक पजामा का नाड़ा कस रही थी पर अब थक गई है,काफी थक गई है देखो तो करवट नही बदल रही लगता है सो गई है या प्यार से थपक थपक कर सुलाया है किसी ने अभी नहीं उठेगी, आवाज़ दे रहे हो क्या चीख रहे हो क्या पर क्यूं मुरौवत करो और जाने दो झपकी नही है की झकझोर दो देखो अंधेरा काफी है अंधेरे में रहने दो देखो तो जुगनू भी सो गए है दुनिया की गोद में अब उठेगी दुनिया बिना अंगड़ाई लिए जुगनू भी अब तुम्हे नजर आएंगे अंधेरे में फिर मैं कहूंगा दुनिया को देखता हूं मैं पर अब खुद की नजरों से जागी चुकी है दुनिया , अब तक जाग रही है लगता है काफी सोई थी।। ©Gyan Prakash Yadav अंधेरे में जुगनू