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अजीब दास्तान का ए ख़ुदा कैसा ये सिलसिला है न

अजीब  दास्तान  का  ए  ख़ुदा  कैसा  ये सिलसिला है
न ही अब कोई शिकवा है न ही अब कोई गिला है
ज़र्द  पत्तों  सी बिखर रही है ज़िन्दगी यहाँ सब की
मुक़म्मल जहाँ किसी को किसी को कुछ नहीं मिला है 👉🏻 प्रतियोगिता- 234

 ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️

🌹"अजीब दास्तान"🌹 

🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या 
केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I
अजीब  दास्तान  का  ए  ख़ुदा  कैसा  ये सिलसिला है
न ही अब कोई शिकवा है न ही अब कोई गिला है
ज़र्द  पत्तों  सी बिखर रही है ज़िन्दगी यहाँ सब की
मुक़म्मल जहाँ किसी को किसी को कुछ नहीं मिला है 👉🏻 प्रतियोगिता- 234

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🌹"अजीब दास्तान"🌹 

🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या 
केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I