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मन, मरज़, मंज़िल या मन्नातों का कुसूर.., जो तुम मे

मन, मरज़, मंज़िल या मन्नातों का कुसूर..,
जो तुम मेरी ना हुई, हम तुम्हारे ना हुए...!!  एक उम्र गुज़ार देने के बावजूद इंसान यह नहीं कह सकता कि उसे मोहब्ब्त का सलीक़ा आ गया है।
#क़ाबिलनहुए #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
#ardent_ashu
मन, मरज़, मंज़िल या मन्नातों का कुसूर..,
जो तुम मेरी ना हुई, हम तुम्हारे ना हुए...!!  एक उम्र गुज़ार देने के बावजूद इंसान यह नहीं कह सकता कि उसे मोहब्ब्त का सलीक़ा आ गया है।
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