ये जो नयी लड़की है बहुत पुरानी हैं... उसके बदन की सोहबत मुँह-ज़बानी हैं..। दुनियां जिसे मोहब्बत समझ रही हैं वो... अब तो यक़ीनन,इक मनगढ़ंत कहानी है..। यहां मिट्टी को फ़क़त मिट्टी नहीं रखना... कुछ गुल खिलाने है,जबतलक जवानी हैं..। अब कुछ नये रास्ते इख़्तियार हो शायद... इंतज़ार से पत्थर आँखें हटानी हैं..। मजबूरी,गरीबी कोठॆ पे उतरी हैं... है कोई अमीर जिसॆ प्यास बुझानी हैं..। इस तमाम खूबसूरती को नंगा रखो... जितनी गंदग़ी है लिबास में छुपानी हैं..। यहां हर शख़्स तो जीते जी मर गया हैं... अब तो सिर्फ़ ये उसकी लाश जलानी हैं..। कानून मॆं है अगर ऎसी क़लम ‘ख़ब्तुल’... मैं तन्हां हूँ,और सरकार गिरानी हैं..। - ख़ब्तुल संदीप बडवाईक सोहबत