Unsplash पल्लव की डायरी प्यार के काबिल थे हम घरौंदा अपना सजाना था परवरिश देकर परिवारों को संस्कारो और ममता का दायरा बढ़ाना था मगर जमाने ने नारी को बरगला रखा है खुद के बजूद की दुहाई देकर शोषण का बाजार सजा रखा है टूट रही है बुनियाद परिवारों की सन्तति अमर्यादित हो रही है भोगवाद की भेंट चढ़ाकर दायरे सब सिमट रहे है माँ बहन बेटी सब कमाने निकल गये अजायबघर जैसे घर हो गये प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #library अजायबघर जैसे घर हो गये