कितनी सदियांँ आईं और चली गईं कितनी पीढ़ियांँ आईं और चली गईं इश्क़ के इल्ज़ाम दीवानों पर लगते हर बार समाज ने बस बना लिया हो एक ही परंपरा इश्क़ नाम ही है बदनाम जो करता उस पर लोग लगा देते हैं बहुतेरे संगीन इल्ज़ाम लगता है जैसे कितना बड़ा गुनाह कर दिया समाज में इसकी कोई सुनवाई भी नहीं करता इश्क़ का अलग ही अपना हिसाब पल भर में हो जाता उम्र भर के लिए जो हुआ सब उस ईश्वर के इशारे पे फिर भी ज़माना लगा देता इल्ज़ाम दीवानों पे इश्क़ ने हँस कर कबूल क्या कर ली सज़ा अपनी ज़माने ने दस्तूर बना लिया इश्क़ के इल्ज़ाम दीवानों पर मढ़ने की ख़ुद पे आते इल्ज़ाम देख इश्क़ ने आख़िर पूछ ही लिया क्या किया तूने सरफिरे! ख़ुद को ही मार डाला।। ♥️ Challenge-701 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।