"माँ की कोख में बिताए वो पल याद कर लेना" जब पंखे को देखकर खयाल आए जब रस्सी देखकर मन खोने लग जाए जब जिंदगी से ज्यादा परेशानी बड़ी लगने लगे जब हर तरफ घुटन सी महसूस होने लगे जब नींद की दवाइयों का डिब्बा दिखने लगे जब ब्लेड और चाकू की धार तेज होने लगे तब आँखे बंद करके अपने बचपन को महसूस करना अपने माँ बाप के दुलार को तुम फिर से जीना तब अपनी माँ का आँचल तुम याद रखना अपने पिता की डाँट का मान रखना अपने भाई की परछाई का तुम जिक्र करना अपनी बहन की खुशियों की तुम फिक्र करना गम किसकी जिंदगी में नहीं है,मत बनना कभी स्वार्थी तुम प्रशांत तुम अपने गमों से यूं ही लड़ते रहना कभी गलत खयाल आए तो बस अपनी माँ के कोख में जिये वो नौ महीने तुम याद कर लेना "माँ की कोख में बिताए वो पल याद कर लेना" जब पंखे को देखकर खयाल आए जब रस्सी देखकर मन खोने लग जाए जब जिंदगी से ज्यादा परेशानी बड़ी लगने लगे जब हर तरफ घुटन सी महसूस होने लगे