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चाहता हूँ, उस अच्छी सी लड़की को अपनी दीद-ए-नज़र बन

चाहता हूँ, उस अच्छी सी लड़की को
अपनी दीद-ए-नज़र बना लूँ...
शरीक-ए-हयात, शरीक-ए-सफ़र बना लूँ..
प्यार दूं, खुशी दूं.. रुखसार-ए-तरब दे दूं..
हक दूं, आज़ादी दूं, इज़्ज़त इजाज़त ये सब दे दूं..
हाँ ! वही सब, 
जो उसे उसका  मज़हब नही देता..
कभी राम, कभी रहीम तो कभी रब नही देता..
वो बेदाद मज़हब जो
उसे सवाल  करने से रोकता है..
समाज जो उसे खिलाफत में आगे बढ़ने से रोकता है..
कभी बुर्क़े मे क़ैद, कभी सिंदूर-ओ-सूत्र
लटकते घूँघट मे मुस्तैद...
पाबंदियाँ, कभी  उसके लिबाज पे...
तो कभी  उसके लिहाज़ पे...
हरे रंग से और रंग लाल से...
बचाना चाहता हूँ उसे मज़हबी मकड़ी जाल से...
मगर डरता हूँ.....
कहीं वो  मुस्लिम ना हो..
वरना  लोग कहेंगे मैं "हिंदू कट्टरवादी" हूँ...
और 
कहीं वो  हिंदू निकली,
तो लोग समझ लेंगे कि मैं "लव-जेहादी" हूँ..
चाहता हूँ, उस अच्छी सी लड़की को
अपनी दीद-ए-नज़र बना लूँ...
शरीक-ए-हयात, शरीक-ए-सफ़र बना लूँ..
प्यार दूं, खुशी दूं.. रुखसार-ए-तरब दे दूं..
हक दूं, आज़ादी दूं, इज़्ज़त इजाज़त ये सब दे दूं..
हाँ ! वही सब, 
जो उसे उसका  मज़हब नही देता..
कभी राम, कभी रहीम तो कभी रब नही देता..
वो बेदाद मज़हब जो
उसे सवाल  करने से रोकता है..
समाज जो उसे खिलाफत में आगे बढ़ने से रोकता है..
कभी बुर्क़े मे क़ैद, कभी सिंदूर-ओ-सूत्र
लटकते घूँघट मे मुस्तैद...
पाबंदियाँ, कभी  उसके लिबाज पे...
तो कभी  उसके लिहाज़ पे...
हरे रंग से और रंग लाल से...
बचाना चाहता हूँ उसे मज़हबी मकड़ी जाल से...
मगर डरता हूँ.....
कहीं वो  मुस्लिम ना हो..
वरना  लोग कहेंगे मैं "हिंदू कट्टरवादी" हूँ...
और 
कहीं वो  हिंदू निकली,
तो लोग समझ लेंगे कि मैं "लव-जेहादी" हूँ..
rahulmishra7749

Rahul Mishra

New Creator