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बचपन और उम्मीद मासूम थे बचपन में,

बचपन और उम्मीद  मासूम थे बचपन में,
                         सच्चे थे।
मिट्टी के घर थे, इरादे पक्के थे।
पता ही नहीं चला,
बड़े-बड़े महल के जिम्मेदारियों  के खड़े हो गए।
कोशिश तो बहुत की,
                   की खड़ा रहूं बचपन वाली डगर  पर,
पता ही नहीं चला हम कब बड़े हो गए। #BachpanAurUmeed  Lakshmi singh Soumya Jain Dr.Imran Hassan Barbhuiya
बचपन और उम्मीद  मासूम थे बचपन में,
                         सच्चे थे।
मिट्टी के घर थे, इरादे पक्के थे।
पता ही नहीं चला,
बड़े-बड़े महल के जिम्मेदारियों  के खड़े हो गए।
कोशिश तो बहुत की,
                   की खड़ा रहूं बचपन वाली डगर  पर,
पता ही नहीं चला हम कब बड़े हो गए। #BachpanAurUmeed  Lakshmi singh Soumya Jain Dr.Imran Hassan Barbhuiya
vikasshyoran3084

Vikas

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#BachpanAurUmeed Lakshmi singh Soumya Jain Dr.Imran Hassan Barbhuiya #कविता