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कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं... ए

कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं...

एक वो जिसमें कन्याओं से पैर नहीं छुआते हैं,
और एक वो जिसमें लोग इन्हें सरेआम जलाते हैं।

एक वो जिसमें इनके पैर धोकर, भोग लगाते हैं,
और एक वो जिसमें इन्हें पेठ में ही गिराते हैं।

एक वो जिसमें कन्या देवी है, इसलिए भोग पाती है,
और एक वो जिसमें ये सिर्फ भोग के काम आती है।

एक में इसे लक्ष्मी, और एक में कलंक कहते हैं
सच, कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं।।
 कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं...

एक वो जिसमें कन्याओं से पैर नहीं छुआते हैं,
और एक वो जिसमें लोग इन्हें सरेआम जलाते हैं।

एक वो जिसमें इनके पैर धोकर, भोग लगाते हैं,
और एक वो जिसमें इन्हें पेठ में ही गिराते हैं।
कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं...

एक वो जिसमें कन्याओं से पैर नहीं छुआते हैं,
और एक वो जिसमें लोग इन्हें सरेआम जलाते हैं।

एक वो जिसमें इनके पैर धोकर, भोग लगाते हैं,
और एक वो जिसमें इन्हें पेठ में ही गिराते हैं।

एक वो जिसमें कन्या देवी है, इसलिए भोग पाती है,
और एक वो जिसमें ये सिर्फ भोग के काम आती है।

एक में इसे लक्ष्मी, और एक में कलंक कहते हैं
सच, कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं।।
 कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं...

एक वो जिसमें कन्याओं से पैर नहीं छुआते हैं,
और एक वो जिसमें लोग इन्हें सरेआम जलाते हैं।

एक वो जिसमें इनके पैर धोकर, भोग लगाते हैं,
और एक वो जिसमें इन्हें पेठ में ही गिराते हैं।