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वो २१ दिन सच में बड़ा ही कमाल का नंबर हैं यह २१।

वो २१ दिन


सच में बड़ा ही कमाल का नंबर हैं यह २१। क्योंकि २१ दिनों में आपको किसी भी चीज़ की आदत भी हो सकती हैं या आपकी आदतें छूट भी सकती हैं। ऐसा मैं नहीं मनोचिकित्सक कहते हैं। मुझे तो पता नहीं पर उन्होंने इस पर काफ़ी पढ़ाई की हैं और वो अपने तजुर्बे से कहते हैं। अब यह तो उनकी शिक्षा का विषय हैं।

ऐसे ही एक विषय मेरा और मेरे प्यार का हैं, वो कहते हैं ना की प्यार करना किसी के बस में नहीं होता वो तो बस हो जाता हैं। ऐसा ही किस्सा कुछ मेरा रहा था या यूंह कह दूं कि हैं?? समझ नहीं आता कैसे कहूं?? कहा से शुरू करूं?? चलिए शुरू से शुरू करते हैं??

साल था २००९ का तब मैं १०वीं कक्षा में था मतलब हूं, यहां पर प्रवेश के लिए एक लंबी कतार लगी हुई हैं। जाहिर सी बात हैं मैंने ९वीं कक्षा ६७% से पास कर ली थीं तो अब १०वीं कक्षा के प्रवेश के लिए यहां खड़ा हूं। वैसे तो यह मेरी मौसी का विद्यालय हैं लेकिन मैं अपने संबंध को बीच में कतई नहीं लाता हूं। वो क्या हैं कि लोग फिर बड़े लोग कहकर चिढ़ाते हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता। 

बड़ी दूर एक लड़की और उसकी मां दोनों साथ खड़े थे, उन्होंने प्रिंसिपल मैडम से बात कि और अपनी बेटी के प्रवेश के लिए पूछा? प्रिंसिपल मैडम ने मुझे बुलाया और कहा की इसको विद्यालय दिखा लाओ तब तक में इनकी मदद करती हूं ताकि इनकी बेटी पूजा का प्रवेश हो जाएं। 

                 (क्रमश: भाग २ में) #वोदिन #वोएहसास #वोभीदिनथे #वोबात #पहलीनज़र #पहलाप्यार #कहानी #बीते_दिनों_की_बातें
वो २१ दिन


सच में बड़ा ही कमाल का नंबर हैं यह २१। क्योंकि २१ दिनों में आपको किसी भी चीज़ की आदत भी हो सकती हैं या आपकी आदतें छूट भी सकती हैं। ऐसा मैं नहीं मनोचिकित्सक कहते हैं। मुझे तो पता नहीं पर उन्होंने इस पर काफ़ी पढ़ाई की हैं और वो अपने तजुर्बे से कहते हैं। अब यह तो उनकी शिक्षा का विषय हैं।

ऐसे ही एक विषय मेरा और मेरे प्यार का हैं, वो कहते हैं ना की प्यार करना किसी के बस में नहीं होता वो तो बस हो जाता हैं। ऐसा ही किस्सा कुछ मेरा रहा था या यूंह कह दूं कि हैं?? समझ नहीं आता कैसे कहूं?? कहा से शुरू करूं?? चलिए शुरू से शुरू करते हैं??

साल था २००९ का तब मैं १०वीं कक्षा में था मतलब हूं, यहां पर प्रवेश के लिए एक लंबी कतार लगी हुई हैं। जाहिर सी बात हैं मैंने ९वीं कक्षा ६७% से पास कर ली थीं तो अब १०वीं कक्षा के प्रवेश के लिए यहां खड़ा हूं। वैसे तो यह मेरी मौसी का विद्यालय हैं लेकिन मैं अपने संबंध को बीच में कतई नहीं लाता हूं। वो क्या हैं कि लोग फिर बड़े लोग कहकर चिढ़ाते हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता। 

बड़ी दूर एक लड़की और उसकी मां दोनों साथ खड़े थे, उन्होंने प्रिंसिपल मैडम से बात कि और अपनी बेटी के प्रवेश के लिए पूछा? प्रिंसिपल मैडम ने मुझे बुलाया और कहा की इसको विद्यालय दिखा लाओ तब तक में इनकी मदद करती हूं ताकि इनकी बेटी पूजा का प्रवेश हो जाएं। 

                 (क्रमश: भाग २ में) #वोदिन #वोएहसास #वोभीदिनथे #वोबात #पहलीनज़र #पहलाप्यार #कहानी #बीते_दिनों_की_बातें