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चल ख्वाब से निकलकर, हकीकत की ओर चलें। गुमनाम, गुफ्

चल ख्वाब से निकलकर, हकीकत की ओर चलें।
गुमनाम, गुफ्तगू की जिंदगी से, शोर की जिंदगी जियें।

तकलीफदेह है ये ख्वाब की कहानियां, 
गुमसुम, गमगीन किताब सी जिंदगियां।
चल छोड़ इस राह से निकलकर, अपने गाँव को चलें।
तपती ,तड़पती धूप-जिंदगी से, शुकून की छाँव को चलें।

चल ख्वाब से निकलकर.......

अंधकार सी हैं ये ख्वाईशों की गलियाँ।
बदलती हैं रंग यहां, चाहतों की तितलियाँ।
आ छोड़ इन तम की गलियों को, अपने साथ अब जियें।
दो वक्त की शुकून की रोटी, और चैन का नीर पियें।

चल ख्वाब से निकलकर.....

©Anand Prakash Nautiyal tnautiyal
  #sadakख्वाब