हर कोई कुछ न कुछ लिख रहा है। कोई लिख रहा दर्द है कोई खुशियाँ लिख रहा है। उतार रहे हैं सब पन्नों पर कहानी अपनी कोई उतार रहा है अहसास कोई अपने ज़ख्म उतार रहा है। चोट तो कहीं न कहीं सभी को लगी है कोई ढूंढ़ रहा है मरहम चोट का कोई ख़ुद को निखार रहा है। हर तरफ दिख रही है बस मायूसी ही मायूसी नही मुकम्मल कोई ज़िन्दगी का एक पल गुजार रहा है। #सबकी #दास्तान