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ज़ख्म सारे उभर कर आ रहे हैं, यानी दिन पुराने याद आ

ज़ख्म सारे उभर कर आ रहे हैं,
यानी दिन पुराने याद आ रहे हैं।

वस्ल के दरमियां ये रुसवाई कैसी?
क्या बोया था और क्या पा रहे हैं।

मेरे चाहने वालों अब खुश हो जा,
तेरी महफ़िल से हम दूर जा रहे हैं।

ये तो मेरे बुरे कर्मों का फल मिल रहा
कि हर मोड़ पर धोखा खा रहे हैं।

सात फेरों की घड़ी है, पर वो नहीं,
....ओह ये आप क्या सुना रहे हैं।

इतनी शिद्दत से कर रहे कोशिश मुस्कुराने
की "एहसास" ज़रुर राज़ गहरा छुपा रहे हैं।

"एहसास"❤️ #और_फिर_नज़्म_बने #एहसास #gazal #poetry #nojoto #writersclub
ज़ख्म सारे उभर कर आ रहे हैं,
यानी दिन पुराने याद आ रहे हैं।

वस्ल के दरमियां ये रुसवाई कैसी?
क्या बोया था और क्या पा रहे हैं।

मेरे चाहने वालों अब खुश हो जा,
तेरी महफ़िल से हम दूर जा रहे हैं।

ये तो मेरे बुरे कर्मों का फल मिल रहा
कि हर मोड़ पर धोखा खा रहे हैं।

सात फेरों की घड़ी है, पर वो नहीं,
....ओह ये आप क्या सुना रहे हैं।

इतनी शिद्दत से कर रहे कोशिश मुस्कुराने
की "एहसास" ज़रुर राज़ गहरा छुपा रहे हैं।

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