Nojoto: Largest Storytelling Platform

आज दरवाजे पर एक भिखारी आया था। मुँह पर ऐसी दीनता ज

आज दरवाजे पर एक भिखारी आया था। मुँह पर ऐसी दीनता जैसे चंद्रमा अमावस्या के दूसरे दिन निकला हो और तरस रहा हो कि थोड़ा और प्रकाश मिल जाता तो भोर तक चमकता रहता। थोड़ी और रोटी मिल जाती तो कल थोड़ी देर तक सोता लेकिन सुबह जल्दी नहीं उठा तो कूड़े में से कबाड़ भी नहीं बीन पाएगा। अरे ! आज वो शायद फिर भूल गया कि छोटी बच्ची के लिए निमोनिया की दवा लानी थी। जो पैसे भीख में मिले थे वो तो सेठ को दे दिया अन्यथा सेठ , नेता जी तक शिकायत पहुँचा देता कि खलिहान की जमीन पर भिखारी की एक छोटी सी झोपड़ी है। वो भी इन सर्द हवाओं के साथ ठंडी पड़ चुकी है , मानो सबसे ज्यादा सर्दी उसे ही लग रही हो। ऐसा हो भी क्यों ना , जब भिखारी और उसकी पत्नी रोते रोते सो जाते हैं ; सम्भवतः तभी झोपड़ी की नींव और दीवार भी आर्द्रता से सराबोर हो जाते हैं। ओस की बूंदें छत से टपकती हैं , उसके नीचे रखने के लिए कोई बर्तन भी नहीं है। भिखारी पैर मोड़कर पुवाल सिरहाने रख कर आंख बंद करके जग रहा है। इसी अवस्था में लेटे निहार रहा है खुद को एक सिग्नल पर , जहां से हजारों मोटर गाड़ियां आवागमन करती रहती हैं किन्तु अभी रुकी हुई हैं। सफेद एम्बेसडर वाले बड़े बाबू आज शायद १ रुपया दे देते पर कमबख़्त १० रुपये की नोट के खुल्ले नहीं थे उनके पास। 

खुल्लों की भी अपनी अलग समस्या है , एक साल पहले तो जैसे खुल्लों का अकाल पड़ गया था। आज भी वो पीले रंग के कुछ नोट पड़े हैं। तब कोई खुल्ला नहीं देता था और अब तो हँसते हैं , कहते हैं ये वाला नोट ही बंद हो गया। कोई गुलाबी रंग का नया आया है जिसमे ऐनक वाले बाबा बीच में हैं। वो भी शायद अब दोनों तरफ बराबर नज़र रखना चाहते हों। पहले एकदम दाहिने में थे तो बाएं वाले शायद मनमानी करते हों। एक डंडा भी लेकर चलते थे ऐनक वाले बाबा लेकिन वह भी अब पुलिस की लाठी में परिणत होकर हंटर की चबुकनुमा छड़ी बन गयी है। जैसे उसी की मदद से सर्कस में खेल दिखाया जा रहा हो। भिखारी जैसे लोग उस सर्कस के वे मेमने हैं जो शेर के सामने एक ही प्याले में दूध पीते हैं। हर वक़्त यह डर बना रहे कि कहीं शेर खा ना जाए लेकिन सर्कस का शेर तो लोमड़ी हो जाता है। थोड़ी चालाकी और छद्म भातृत्व का अनुपालन वह शेर ५ वर्षों तक करता है। फिर मेमने को दबोच कर उसका मांस भक्षण करता है और पुनः संतुष्टि के लिए दूसरे सर्कस में भर्ती हो जाता है। मेमनों की कीमत शेर की कीमत के सामने है ही क्या? कोई भी सर्कस मास्टर इसे फायदे का ही सौदा मानेगा।

जिंदगी का सौदा रोटी के कुछ टुकड़ों के लिए बहुत घाटे में बेच कर अपना गुजर बसर कर रहे भिखारी और उसके परिवार में हर वस्तु काली है परंतु जब भिखारी की पत्नी राम और सीता के चित्र के सामने मिट्टी के तेल का ढ़िबरी जलाती है तब दीप्तिमान हो उठता है १९९९ का वह कैलेण्डर। उसके साथ ही प्रकाश हर प्राणी की आत्मा से निकली उस चीत्कार से द्रवित होकर धीमा नहीं पड़ता जबकि और रोशनी प्रक्षेपित करता है जीवन के उस पर्दे पर जिसका प्रसारण करने वाली मशीन सूर्य से भी ज्यादा चमकदार है। जिस पर कभी कोई दाग लग ही नहीं सकता। जो परम प्रकाशमय पुंज हो , जिससे पूरा भारतवर्ष प्रकाशित हो उठे। उसी प्रकाश की परिपक्वता यदि ८ मिनट तक बनी रहे तो भिखारी को सूर्य की भी जरूरत ना पड़े शायद। परंतु यहां सब काम पेरिस्कोप पर होता है। ४५° पर एक प्रतिबिम्ब बनती है और दूसरी वाली प्रतिबिम्ब में जो भी चित्र दिखती है वो कदाचित उल्टी नहीं होती। वास्तव में यदि वास्तविक चित्र देखना हो तो समाज को उल्टी नजरों से देखना पड़ेगा। तभी भिखारी जैसे लोग दिखेंगे और शायद तभी निमोनिया से ग्रसित भिखारी की वो बच्ची इन ठंडी पड़ चुकी भावनाओं से बच पाए।

#nojoto #bhikhari #rustampens #story #katha #kahani #laghukatha #satire

आज दरवाजे पर एक भिखारी आया था। मुँह पर ऐसी दीनता जैसे चंद्रमा अमावस्या के दूसरे दिन निकला हो और तरस रहा हो कि थोड़ा और प्रकाश मिल जाता तो भोर तक चमकता रहता। थोड़ी और रोटी मिल जाती तो कल थोड़ी देर तक सोता लेकिन सुबह जल्दी नहीं उठा तो कूड़े में से कबाड़ भी नहीं बीन पाएगा। अरे ! आज वो शायद फिर भूल गया कि छोटी बच्ची के लिए निमोनिया की दवा लानी थी। जो पैसे भीख में मिले थे वो तो सेठ को दे दिया अन्यथा सेठ , नेता जी तक शिकायत पहुँचा देता कि खलिहान की जमीन पर भिखारी की एक छोटी सी झोपड़ी है। वो भी इन सर्द हवाओं के साथ ठंडी पड़ चुकी है , मानो सबसे ज्यादा सर्दी उसे ही लग रही हो। ऐसा हो भी क्यों ना , जब भिखारी और उसकी पत्नी रोते रोते सो जाते हैं ; सम्भवतः तभी झोपड़ी की नींव और दीवार भी आर्द्रता से सराबोर हो जाते हैं। ओस की बूंदें छत से टपकती हैं , उसके नीचे रखने के लिए कोई बर्तन भी नहीं है। भिखारी पैर मोड़कर पुवाल सिरहाने रख कर आंख बंद करके जग रहा है। इसी अवस्था में लेटे निहार रहा है खुद को एक सिग्नल पर , जहां से हजारों मोटर गाड़ियां आवागमन करती रहती हैं किन्तु अभी रुकी हुई हैं। सफेद एम्बेसडर वाले बड़े बाबू आज शायद १ रुपया दे देते पर कमबख़्त १० रुपये की नोट के खुल्ले नहीं थे उनके पास। खुल्लों की भी अपनी अलग समस्या है , एक साल पहले तो जैसे खुल्लों का अकाल पड़ गया था। आज भी वो पीले रंग के कुछ नोट पड़े हैं। तब कोई खुल्ला नहीं देता था और अब तो हँसते हैं , कहते हैं ये वाला नोट ही बंद हो गया। कोई गुलाबी रंग का नया आया है जिसमे ऐनक वाले बाबा बीच में हैं। वो भी शायद अब दोनों तरफ बराबर नज़र रखना चाहते हों। पहले एकदम दाहिने में थे तो बाएं वाले शायद मनमानी करते हों। एक डंडा भी लेकर चलते थे ऐनक वाले बाबा लेकिन वह भी अब पुलिस की लाठी में परिणत होकर हंटर की चबुकनुमा छड़ी बन गयी है। जैसे उसी की मदद से सर्कस में खेल दिखाया जा रहा हो। भिखारी जैसे लोग उस सर्कस के वे मेमने हैं जो शेर के सामने एक ही प्याले में दूध पीते हैं। हर वक़्त यह डर बना रहे कि कहीं शेर खा ना जाए लेकिन सर्कस का शेर तो लोमड़ी हो जाता है। थोड़ी चालाकी और छद्म भातृत्व का अनुपालन वह शेर ५ वर्षों तक करता है। फिर मेमने को दबोच कर उसका मांस भक्षण करता है और पुनः संतुष्टि के लिए दूसरे सर्कस में भर्ती हो जाता है। मेमनों की कीमत शेर की कीमत के सामने है ही क्या? कोई भी सर्कस मास्टर इसे फायदे का ही सौदा मानेगा। जिंदगी का सौदा रोटी के कुछ टुकड़ों के लिए बहुत घाटे में बेच कर अपना गुजर बसर कर रहे भिखारी और उसके परिवार में हर वस्तु काली है परंतु जब भिखारी की पत्नी राम और सीता के चित्र के सामने मिट्टी के तेल का ढ़िबरी जलाती है तब दीप्तिमान हो उठता है १९९९ का वह कैलेण्डर। उसके साथ ही प्रकाश हर प्राणी की आत्मा से निकली उस चीत्कार से द्रवित होकर धीमा नहीं पड़ता जबकि और रोशनी प्रक्षेपित करता है जीवन के उस पर्दे पर जिसका प्रसारण करने वाली मशीन सूर्य से भी ज्यादा चमकदार है। जिस पर कभी कोई दाग लग ही नहीं सकता। जो परम प्रकाशमय पुंज हो , जिससे पूरा भारतवर्ष प्रकाशित हो उठे। उसी प्रकाश की परिपक्वता यदि ८ मिनट तक बनी रहे तो भिखारी को सूर्य की भी जरूरत ना पड़े शायद। परंतु यहां सब काम पेरिस्कोप पर होता है। ४५° पर एक प्रतिबिम्ब बनती है और दूसरी वाली प्रतिबिम्ब में जो भी चित्र दिखती है वो कदाचित उल्टी नहीं होती। वास्तव में यदि वास्तविक चित्र देखना हो तो समाज को उल्टी नजरों से देखना पड़ेगा। तभी भिखारी जैसे लोग दिखेंगे और शायद तभी निमोनिया से ग्रसित भिखारी की वो बच्ची इन ठंडी पड़ चुकी भावनाओं से बच पाए। #Nojoto #bhikhari #rustampens #story #katha #kahani #laghukatha #satire #Books

Views