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पल्लव की डायरी सजाते रहे गैरो के दिवस मूर्ख हम बन

पल्लव की डायरी
सजाते रहे गैरो के दिवस
मूर्ख हम बन रहे है
रहन सहन सँस्कृति अपनी भूले
पव क्लब में चिंतवन अपने खो रहे है
शक्ल सूरत से हिंदुस्तानी
व्यसनों की मस्ती में झूम रहे है
चलन व्यवस्थाओं का आज भी शोषण का
आजादी को मूर्खता पूर्णक ढोह रहे है
                                              प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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