"शायद ऐसी ही वीरान जगह होगी तुम्हारी दुनिया की ,जब भी मुलाकात होती है,एक सन्नाटा सा रहता है! वैसे जब भी ताकता मैं इस सन्नाटे को,तो वो मुझे इशारों-इशारों में जरूर कुछ कहता। फिर देखते-देखते सन्नाटा अचानक गायब से होने लगता । सियारों की हूल गूंजने लगती, तो एहसास होता , ये सन्नाटा नही अपना ही वहम था, भ्रम था, जो साधक नही बाधक हो रहा था, अब तो मैं निडर हूँ। सोचता हूँ एक सन्नाटा फिर हो तो मैं उसमें कुछ खोज सकूं!" DRP. तो मैं कुछ खोजूं....