अभावों,वंचितों,अनापूर्ति में जीवन जब , व्याकुलता से कराहता है, न दो जून रोटी,न छत पर साया हो वो फटेहाल गरीबी में पाता है। दोष उनका नही ये सियासी सियासतदानों का ही भाग्यविधाता है, व्यवस्था लचर व ढोंगी नेताओ का असली चेहरा नजर आता है। यह एक मात्र कुमानसिकता जो कि सर्वहारा के हिस्से आता है, हो बेज़ार वो स्वंय अपनी जरूरत को को मारा मारा फिरता है, गरीबी एक नवपरिभाषा जो कि हम मानवों के द्वारा रचा भाग है, यह वो दीमक है जो विकसित को भी विकासशील का देता दाग है, यह एक अभिशाप से कम नही जिसके माथे मांड़ दी वो तिल तिल मरता है, वो बेबस-बेहाल-लाचार रोज़ ही असमानता-रूढ़ियों-भूख से जार जार होता है। #साहित्यिक_सहायक #sanjaysheoran #ritiksheoran #ग़रीबी #yqbaba #yqdidi