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अत्यन्त दु:ख से रोती हुई कुरूकुल की स्त्रियों ने भ

अत्यन्त दु:ख से रोती हुई कुरूकुल की स्त्रियों ने भी अपने पिता आदि के साथ-साथ पतियों के लिये जल अपर्ण किये पढ़िए महाभारत !! 📄📄
{Bolo Ji Radhey Radhey}
महाभारत: स्‍त्री पर्व 
सप्त़विंष अध्याय: श्लोक 19-44 
{Bolo Ji Radhey Radhey}
📜 वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन। वे युधिष्ठिर आदि सब लोग कल्याणमयी, पुण्यसलिला, अनेक जलकुण्डों से सुशोभित, स्वच्छ, विशाल रूप धारिणी तथा तट प्रदेष में महान् वनवाली गंगाजी के तट पर आकर अपने सारे आभूषण, दुपट्टे तथा पगड़ी आदि उतार डाले और पिताओं, भाईयों, पुत्रों, पौत्रों, स्वजनों तथा आर्य वीरों के लिये जलांजलि प्रदान की।

📜 अत्यन्त दु:ख से रोती हुई कुरूकुल की स्त्रियों ने भी अपने पिता आदि के साथ-साथ पतियों के लिये जल अपर्ण किये। धर्मज्ञ पुरुषों ने अपने हितेषी सुहृदय के लिये भी जलां अजिल देने का कार्य सम्पन्न किया। वीरों की पत्नियों द्वारा जब उन वीरों के लिये जलां अञ्जलि दी जा रही थी उस समय गंगाजी के जल में उतरने के लिये बड़ा सुन्दर मार्ग बन गया और गंगा का पाट अधिक चौड़ा हो गया। 

📜 महासागर के समान विशाल वह गंगा तट आनन्द और उत्सव से शून्य होने पर भी उन वीर पत्नियों से ब्याप्त होने के कारण बड़ा शोभा पाने लगा। महाराज। तदन्तर कुन्ती देवी सहसा शोक से कातर हो रोती हुई मंद वाणी में अपने पुत्रों से बोली- पाण्डवों जो महाधनुर्धर वीर रथ यूथपतियों का भी यूथपति तथा वीरोचित शुभ लक्षणों से सम्पन्न था, जिसे युद्ध में अर्जुन ने परास्त किया है, तथा जिसे तुम लोग सूत पुत्र एवं राधा पुत्र के रूप में मानते जानते हो।

📜 जो सेना के मध्य भाग में भगवान सूर्य के समान प्रकाषित होता था, जिसने पहले सेवकों सहित तुम सब लोगों का अच्छी सामना किया था, जो दुर्योधन की सारी सेना को अपने पीछे खींचता हुआ बड़ी सोभा पाता था, बल और पराक्रम में जिसकी समानता करने बाला इस भू-तल पर दूसरा कोई राजा नहीं है, जिस शूरवीर ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर भी भू-मण्डल में सदां यश का ही उपार्ज किया है,

📜 संग्राम में कभी पीठ न दिखाने वाला अनायास ही महान् कर्म करने वाले अपने उस सत्य प्रतिज्ञ भ्राता कर्ण के लिये तुम लोग जलदान करो। वह तुम लोगों का बड़ा भाई था। भगवान सूर्य के अंष से वह वीर मेरे ही गर्भ से उत्पन्न हुआ था। जन्म के साथ ही उस शूरवीर के शरीर में कवच और कुण्डल शोभा पाते थे। वह सूर्य देव के समान ही तेजस्वी था। 

📜 माता का यह अप्रिय बचन सुनकर समस्त पाण्डव कर्ण के लिये बार-बार शोक करते हुए अत्यन्त कष्ट में पड़ गये। तदन्तर पुरुषसिंह वीर कुन्ती पुत्र युधिष्ठिर सर्प के समान लंबी सांस खींचते हुए अपनी माता से बोले। मां। जो बड़े-बड़े महारथियों को डुबो देने के लिये अत्यन्त गहरे जलासय के समान थे, बाण ही जिनकी लहर, ध्वजा भंवर, बड़ी-बड़ी भुजाएं महान् ग्राहें और हथेली का शब्द ही गंभीर गर्जन था।

📜 जिनके बाणों के गिरने की सीमा में आकर अर्जुन के सिवा दूसरा कोई वीर टिक नहीं सकता था वे सूर्य कुमार तेजस्वी कर्ण पूर्व काल में आपके पुत्र कैसे हुए? जिनकी भुजाओं के प्रताप से हम सब ओर से संतप्त रहते थे, कपड़े में ढकी हुई आग के समान उन्हें अब तक आपने कैसे छिपा रखा था। 

📜 धृतराष्ट्र के पुत्रों ने सदां उन्हीं के बाहुवल का भरोसा कर रखा था, जैसे कि हम लोगों ने गाण्डीवधारी अर्जुन के बल का आश्रय लिया था। कुन्तीपुत्र कर्ण के सिवा दूसरा कोई रथी ऐसा बड़ा बलवान नहीं हुआ है, जिसने समस्त राजाओं की सेना को रोक दिया हो। वे समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ कर्ण क्या सचमुच हमारे बड़े भाई थे? आपने पहले उन अद्भुत पराक्रमी वीर को कैसे उत्पन्न किया था?

©N S Yadav GoldMine
  #Aurora अत्यन्त दु:ख से रोती हुई कुरूकुल की स्त्रियों ने भी अपने पिता आदि के साथ-साथ पतियों के लिये जल अपर्ण किये पढ़िए महाभारत !! 📄📄
{Bolo Ji Radhey Radhey}
महाभारत: स्‍त्री पर्व 
सप्त़विंष अध्याय: श्लोक 19-44 
{Bolo Ji Radhey Radhey}
📜 वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन। वे युधिष्ठिर आदि सब लोग कल्याणमयी, पुण्यसलिला, अनेक जलकुण्डों से सुशोभित, स्वच्छ, विशाल रूप धारिणी तथा तट प्रदेष में महान् वनवाली गंगाजी के तट पर आकर अपने सारे आभूषण, दुपट्टे तथा पगड़ी आदि उतार डाले और पिताओं, भाईयों, पुत्रों, पौत्रों, स्वजनों तथा आर्य वीरों के लिये जलांजलि प्रदान की।

📜 अत्यन्त दु:ख से रोती हुई कुरूकुल की स्त्रियों ने भी अपने पिता आदि के साथ-साथ पतियों के लिये जल अपर्ण किये। धर्मज्ञ पुरुषों ने अपने हितेषी सुहृदय के लिये भी जलां अजिल देने का कार्य सम्पन्न किया। वीरों की पत्नियों द्वारा जब उन वीरों के लिये जलां अञ्जलि दी जा रही थी उस समय गंगाजी के जल में उतरने के लिये बड़ा सुन्दर मार्ग बन गया और गंगा का पाट अधिक चौड़ा हो गया।

#Aurora अत्यन्त दु:ख से रोती हुई कुरूकुल की स्त्रियों ने भी अपने पिता आदि के साथ-साथ पतियों के लिये जल अपर्ण किये पढ़िए महाभारत !! 📄📄 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्‍त्री पर्व सप्त़विंष अध्याय: श्लोक 19-44 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन। वे युधिष्ठिर आदि सब लोग कल्याणमयी, पुण्यसलिला, अनेक जलकुण्डों से सुशोभित, स्वच्छ, विशाल रूप धारिणी तथा तट प्रदेष में महान् वनवाली गंगाजी के तट पर आकर अपने सारे आभूषण, दुपट्टे तथा पगड़ी आदि उतार डाले और पिताओं, भाईयों, पुत्रों, पौत्रों, स्वजनों तथा आर्य वीरों के लिये जलांजलि प्रदान की। 📜 अत्यन्त दु:ख से रोती हुई कुरूकुल की स्त्रियों ने भी अपने पिता आदि के साथ-साथ पतियों के लिये जल अपर्ण किये। धर्मज्ञ पुरुषों ने अपने हितेषी सुहृदय के लिये भी जलां अजिल देने का कार्य सम्पन्न किया। वीरों की पत्नियों द्वारा जब उन वीरों के लिये जलां अञ्जलि दी जा रही थी उस समय गंगाजी के जल में उतरने के लिये बड़ा सुन्दर मार्ग बन गया और गंगा का पाट अधिक चौड़ा हो गया। #पौराणिककथा

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