उनींदी आँखें बंद खिड़कियों से झाँकती उस पार बुझा रही हैं मृगतृष्णा कुछ पी रहीं हैं कुछ छलका रहीं हैं जो नहीं प्राप्य अमृत धारा इक ख़्वाब की ख़ुशबू में #napowrimo का 18वाँ दिन है बल्कि कहें 18वीं रात और उस ख़्वाब की ख़ुशबू है, जिसमें हम जीते हैं। #ख़्वाबकीख़ुशबू #yourquoteandmine Collaborating with YourQuote Didi