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कुछ रिश्ते कुवें की मेंढक की तरह होते है, ओ सिर्फ

कुछ रिश्ते कुवें की मेंढक की तरह होते है,
ओ सिर्फ कुवें के अंदर ही उछल कूद करते है

कुछ रिश्तों में बड़ा रौब दिखता है,
पति और साँसके डर से ,
पत्नि की आँखों मे ख़ौफ़ दिखता है।

हर रिश्तों के मंज़र अलग है साहब
बेटी की तारीफ करना 
कितना सरल है।
और बहू की तारीफ करना
कितना मुश्किल हैं साहब।
हर माँ बेटी को रानी
और बहू को नौकरानी
आखिर कब तक ऐसी सोच
के सिकार रहेंगे साहब।
कुछ रिश्ते कुवें की मेंढक की तरह होते है,
ओ सिर्फ कुवें के अंदर ही उछल कूद करते है

कुछ रिश्तों में बड़ा रौब दिखता है,
पति और साँसके डर से ,
पत्नि की आँखों मे ख़ौफ़ दिखता है।

हर रिश्तों के मंज़र अलग है साहब
बेटी की तारीफ करना 
कितना सरल है।
और बहू की तारीफ करना
कितना मुश्किल हैं साहब।
हर माँ बेटी को रानी
और बहू को नौकरानी
आखिर कब तक ऐसी सोच
के सिकार रहेंगे साहब।