मेरे इश्क का कुछ इस कदर सिला देता है,, हर बार वो मुझको रुला देता है,, महबूब मुझे कहता है वो,, पर उसका आशिक कोई और है,, जो सुनसान हो घर तो उसको बुला लेता है,, मुझको वो दहलीज के अंदर नहीं आने देता,, वो जो आए उसे बिस्तर पे सुला देता है,, मेरे इश्क का कुछ इस कदर सिला देता है हर बार वो मुझको रुला देता है... मुझे उसके होठों को छूने कि इजाजत नहीं है,, कांधे के तिल का उसको पता देता है,, मेरे सामने उसके लब्ज नहीं खुलते,, हर राज वो उसको बता देता है,, कहता है मोहब्बत करता है मुझसे,, पर रात दरवाजे पे उसके लिए खड़ा रहता है,, मेरे लिए जिस्म पे पर्दा शर्म का,, उसके लिए हर पर्दा गिरा देता है,, अमित (चंद्र) ©little_things_ Devesh Pandey 'Chinmay'