खिड़की के पास बैठ कर मैं चीख लेती हू, तकिया गीला कर मैं खुद के अंशु पोंछ लेती हूं! मैं अनाड़ी सी थी, सायद पूरा बेअकल सी थी, जो मिलता था, मैं उसी पे फ़िदा हो जाती थी, मैं नासमझ, सब पर स्नेह लुटाती थी! ....................…............... मैं जिंदगी जिंदादिल से जीतू हु, सांस लेकर सबूत मैं नही देती हु! मैने देखा है फैसले अक्सर गलतफहमिया पैदा कर, हर रिश्ते खराब करते हैं, इसलिए अपने आप के सबसे करीब, मैं खुद को रखती हूं, हां, सिर्फ़ खुद को रखती हूं! वो क्या है न मैं एक ही किरदार निभाती हूं, चहरा पे चहरा मैं नही लगाती हूं!! #saumya ki kalam se…...... ©saumya sahu #Smile