बेमतलब सी है राहें तुम्हारी तुम ढलते शाम लगते हो अलंकार से लबालब कल्पनाएं तुम्हारी तुम शब्दों में काफ़ी मझे लगते हो दरकिनार कर लो खुद से अपने चाहतों को फ्रेबियत से विमुक्त तुम नादान झलकते हो कितने हसीन दर्द को सहा है मैने ये होठों पे मुस्कान बता रही तुम्हारी तुम अभी इस महफ़िल में ज़रा टुच्चे लगते हो #मेरे_जज्बात008 #मेरेएहसास #कुणाल_कंठ #कामिल_कवि #kunu #yqdidi #yqbaba