दाउम्र नशे में धूत क्या ढूंढ रहे हो सूत ना हो तुम अबला नारी तो बंद करो ये मगजमारी रूठके बैठो तो मनाने हम न आएंगे हं अगर जिंदगी के बारे में कुछ पूछना चाहो, तो एक दोहा हम भी सुनाएंगे ना थी रेशम की चादर अपने हिस्से में, और ना है ऐसो-आराम मेरे इस किस्से में जब थे सातवी कख्या में, तब तेरे दादाजी ने था पहना मौत का सेहरा न जाने कैसे मुझको लगा एक जख्म गहरा संभालने की क़ाबिलियत नहीं थी मुझमें ना ही खुद सँभलने की पर तलब थी मुझे ये आंसूअों की बाढ़ रोकने की ऐसा नहीं था की माँ नहीं थी साथ हर बार घर की चूल्हे-चौके के लिए अच्छा नहीं लगता जब वो फैलाए हाथ सौभाग्य था हमारा के अनूज थे हम और भैया की नौकरी लग गयी तब लगा महफूज थे हम पर कब तक.. कब तक ये सिलसिला चलता रहेगा आज तो वो हैं पर कल तो उन्हें भी जाना रहेगा जिंदगी के इस बेगैरत रबये से वाक़ित थे हम खुदका अक्ष आईने में देखके हैरान थे हम ना इनमे थी जिम्मेदारी की चमक ना अनुभव की सिकन ll तब सपना नहीं था कुछ.. तो हिम्मत के पंखों से भरने लगे थे जरुरत के आसमां में उड़ान And Here I Am Giving U The Life I Wished For, तो रखना हमारा मान #फलसफा_ए_ज़िन्दगी