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#OpenPoetry जब दफ़्तर में बैठा होता हूँ,तो एक बार न

#OpenPoetry जब दफ़्तर में बैठा होता हूँ,तो एक बार नज़र सारी तरफ घूमती है,ऐसा लगता है जैसे यह उम्र एक समन्दर है और मैं एक जहाज़ ,जो इस समन्दर के साथ साथ चला जा रहा हूँ, एक किनारा है जहाँ से आँखे पहली बार खुली है,एक किनारा वो है जहाँ आँख आखिरी बार बन्द होगी,आस पास के जहाज़ भी उस किनारे तक पहुंचने के सफर में है,सब जहाज़ अपनी दिशा में चल रहे है,दिशा कोई भी हो हर जहाज़ किनारे पर ज़रूर पहुंचेगा।सफर में कितनी लहरें अन्दर उतरेंगी जहाज़ के बस वही मायने रखता है,बहुत से जहाज़ खुद के निर्देशन से चलने की सोचते है बस लहरों की गति से हार मानने लगते हैं।बस उन लहरों से हार ना मानते हुए ,समन्दर की लहरों से जूझते हुए किनारा हासिल करने की कवायद ही ज़िन्दगी है।जब सुबह उठकर ब्रश करता हूँ लगता है जैसे मैंने एक बुर्का पहन रखा है सिर से लेकर पाँव तक जिसमे आँखे, कान ,नाक सब पहले से ही जड़ा हुआ है, ऐसा लगता है मैं बस एक किरदार निभा रहा हूँ,किसी का दोस्त ,किसी का बेटा,जब यह किरदार पूरा हो जाएगा एक नए किरदार का बुर्का मिलेगा।उस बुर्के के साथ कुछ किरदार और जीने हैं।इस बुर्के वाले के ख्याल से ही शायद, मुझे ज़िन्दगी जीनी आसान लगती है। कुछ मन से
#OpenPoetry जब दफ़्तर में बैठा होता हूँ,तो एक बार नज़र सारी तरफ घूमती है,ऐसा लगता है जैसे यह उम्र एक समन्दर है और मैं एक जहाज़ ,जो इस समन्दर के साथ साथ चला जा रहा हूँ, एक किनारा है जहाँ से आँखे पहली बार खुली है,एक किनारा वो है जहाँ आँख आखिरी बार बन्द होगी,आस पास के जहाज़ भी उस किनारे तक पहुंचने के सफर में है,सब जहाज़ अपनी दिशा में चल रहे है,दिशा कोई भी हो हर जहाज़ किनारे पर ज़रूर पहुंचेगा।सफर में कितनी लहरें अन्दर उतरेंगी जहाज़ के बस वही मायने रखता है,बहुत से जहाज़ खुद के निर्देशन से चलने की सोचते है बस लहरों की गति से हार मानने लगते हैं।बस उन लहरों से हार ना मानते हुए ,समन्दर की लहरों से जूझते हुए किनारा हासिल करने की कवायद ही ज़िन्दगी है।जब सुबह उठकर ब्रश करता हूँ लगता है जैसे मैंने एक बुर्का पहन रखा है सिर से लेकर पाँव तक जिसमे आँखे, कान ,नाक सब पहले से ही जड़ा हुआ है, ऐसा लगता है मैं बस एक किरदार निभा रहा हूँ,किसी का दोस्त ,किसी का बेटा,जब यह किरदार पूरा हो जाएगा एक नए किरदार का बुर्का मिलेगा।उस बुर्के के साथ कुछ किरदार और जीने हैं।इस बुर्के वाले के ख्याल से ही शायद, मुझे ज़िन्दगी जीनी आसान लगती है। कुछ मन से

कुछ मन से #OpenPoetry