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शरारती किस्से वो फ़ोन पर सुनाया करती थी एक लड़की थी

शरारती किस्से वो फ़ोन पर सुनाया करती थी
एक लड़की थी मुझे गोद में सुलाया करती थी

वैसे तो कोई नाम नहीं था उस रिश्ते का कभी
लेकिन बेग़मों वाले हक़ खूब जताया करती थी

सिर्फ़ मेरी ही है वो जब मैं ज़िद्द पकड़ लेता था
रूठने पर मुझे कभी माँ जैसे मनाया करती थी

उसके बिना रहना कैसे है जब भी मैंने बातें कीं
झगड़े हो जाते ऐसी तरकीबें सुझाया करती थी

कैसे तुमको अपना बना लूँ जब भी पूछता उसे
खेल-खेल में घास की अंगूठी बनाया करती थी

मंदिर मस्ज़िद गुरूद्वारे भी गया हूँ उसके साथ
मुझे कबूला नहीं, बस ख़ुदा दिखाया करती थी

कभी वो भी चली जायेगी मुझे मालूम था मगर
सच्ची कसमें खुदा के सामने खाया करती थी

उसी शहर में रहता हूँ उन जगहों पर मैं जाता हूँ
वो मिलने आएगी,जहाँ मिलने आया करती थी ।। शरारती किस्से वो फ़ोन पर सुनाया करती थी
एक लड़की थी मुझे गोद में सुलाया करती थी

वैसे तो कोई नाम नहीं था उस रिश्ते का कभी
लेकिन बेग़मों वाले हक़ खूब जताया करती थी

सिर्फ़ मेरी ही है वो जब मैं ज़िद्द पकड़ लेता था
रूठने पर मुझे कभी माँ जैसे मनाया करती थी
शरारती किस्से वो फ़ोन पर सुनाया करती थी
एक लड़की थी मुझे गोद में सुलाया करती थी

वैसे तो कोई नाम नहीं था उस रिश्ते का कभी
लेकिन बेग़मों वाले हक़ खूब जताया करती थी

सिर्फ़ मेरी ही है वो जब मैं ज़िद्द पकड़ लेता था
रूठने पर मुझे कभी माँ जैसे मनाया करती थी

उसके बिना रहना कैसे है जब भी मैंने बातें कीं
झगड़े हो जाते ऐसी तरकीबें सुझाया करती थी

कैसे तुमको अपना बना लूँ जब भी पूछता उसे
खेल-खेल में घास की अंगूठी बनाया करती थी

मंदिर मस्ज़िद गुरूद्वारे भी गया हूँ उसके साथ
मुझे कबूला नहीं, बस ख़ुदा दिखाया करती थी

कभी वो भी चली जायेगी मुझे मालूम था मगर
सच्ची कसमें खुदा के सामने खाया करती थी

उसी शहर में रहता हूँ उन जगहों पर मैं जाता हूँ
वो मिलने आएगी,जहाँ मिलने आया करती थी ।। शरारती किस्से वो फ़ोन पर सुनाया करती थी
एक लड़की थी मुझे गोद में सुलाया करती थी

वैसे तो कोई नाम नहीं था उस रिश्ते का कभी
लेकिन बेग़मों वाले हक़ खूब जताया करती थी

सिर्फ़ मेरी ही है वो जब मैं ज़िद्द पकड़ लेता था
रूठने पर मुझे कभी माँ जैसे मनाया करती थी