मैं जो हूँ कवि हूँ मैंने यह भ्रम पाल रखा है कितना अच्छा है मेरा भ्रम मुझे खुश रखता है मेरे मन मे उमड़ते दुःखों के बादलों को नष्ट करता है जीवन की रीतियां जीने की कलायें सीखने को प्रेरित करता है फिर करता है मुझे औरों से अलग मेरा मन सुरभ्य बनाता है इन सीमेंटी जंगलों के सघन अंधियारों मे मुझे पक्षियों का कलनाद कराता है और बनाता है समाज मे मुझे सुभट वर्तमान मे घटित सामाजिक क्रियाकलापों से दुःख होता है यह उनसे उबरने का साहस देता है यह बिकते हुये ईमान भ्रष्टों के सम्मान व्यग्रता से ग्रसित इंसान दूर है स्नेहाभिसिक्ती भावना से फसें है मन की संकीर्णता मे वहशियाना हो गये है जीने के लिए मर्मता शून्य है जिनकी अनाचित है भविष्य को लेकर वैसे तो इन पर कोई फर्क़ नहीं पड़ता पर मुझे एक मिंमर चाहिए कुछ कहना चाहता हूँ हो सके तो सुनकर निरधारिए समाज की अलक्षित प्रतिमा आने वाले भविष्य के लिए इन समाजी लुटेरों से मात्सर्य है मेरा पर यकीन मानिए मेरी कुछ ख्वाहिश नहीं है मेरी तरुणाई सूरज की अरुणाई सी अंर्तव्यापी है मेरी ख्वाहिश तो सिर्फ एक पेन और एक कागज है क्योंकि मुझे पूर्ण पारितोष भ्रम है मैं कवि हूं कुँवर अरुण #solotraveller मैं जो हूँ कवि हूँ मैंने यह भ्रम पाल रखा है कितना अच्छा है मेरा भ्रम मुझे खुश रखता है मेरे मन मे उमड़ते दुःखों के बादलों को नष्ट करता है जीवन की रीतियां जीने की कलायें