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न दिल की दुकान लगा पाता हूँ न मन का हाट ही सजा पा


न दिल की दुकान लगा पाता हूँ
न मन का हाट ही सजा पाता हूँ।
इस बाजार में गम बेच न सका
और न खुशी ही खरीद पाता हूँ।
खटका सा लगा रहता है हर पल
नफा होता नहीं नुकसान सह नहीं पाता हूँ।
अजब हालत है मेरे व्यापार की
नकद बिकता नहीं उधार चुका नहीं पाता हूँ।
थमता नहीं सिलसिला मेरे आने जाने का
देनदार को ढूँढता हूँ लेनदार देख छिप जाता हूँ।
हर्गिज़ समझ नहीं आता ये दस्तूर मुझे
इस उधेड़बुन में आखिर मैं क्या कमाता हूँ।

न दिल की दुकान लगा पाता हूँ
न मन का हाट ही सजा पाता हूँ।

बी डी शर्मा चण्डीगढ़ हाट

न दिल की दुकान लगा पाता हूँ
न मन का हाट ही सजा पाता हूँ।
इस बाजार में गम बेच न सका
और न खुशी ही खरीद पाता हूँ।
खटका सा लगा रहता है हर पल
नफा होता नहीं नुकसान सह नहीं पाता हूँ।
अजब हालत है मेरे व्यापार की
नकद बिकता नहीं उधार चुका नहीं पाता हूँ।
थमता नहीं सिलसिला मेरे आने जाने का
देनदार को ढूँढता हूँ लेनदार देख छिप जाता हूँ।
हर्गिज़ समझ नहीं आता ये दस्तूर मुझे
इस उधेड़बुन में आखिर मैं क्या कमाता हूँ।

न दिल की दुकान लगा पाता हूँ
न मन का हाट ही सजा पाता हूँ।

बी डी शर्मा चण्डीगढ़ हाट
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