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बंद दर-ओ-दीवार में शिथिल पड़ा, मैं ये सोचता हूं। क

बंद दर-ओ-दीवार में शिथिल पड़ा, मैं ये सोचता हूं।
कि जाना किस डगर था, और कहां खड़े हुए हैं।।

दरख़्त जितने है आलम में जवां, सब चहक रहे हैं।
उम्रदराज दरख़्त, शांत है, अटल है, बस खड़े हुए हैं।।

कि आयी आंधी इक रोज़ कयामत की,दरख़्त 
जो जवां थे, नौसीखिए थे, सब ढह गए हैं।
हुनरमंद, तजुर्बेकार, और जो काबिल थे
दरख़्त, फकत वही खड़े हुए है।।


किशोरी लाल

©kishori lal bror #शायरी #कविता #नज्म #ख्याल 

#findyourself
बंद दर-ओ-दीवार में शिथिल पड़ा, मैं ये सोचता हूं।
कि जाना किस डगर था, और कहां खड़े हुए हैं।।

दरख़्त जितने है आलम में जवां, सब चहक रहे हैं।
उम्रदराज दरख़्त, शांत है, अटल है, बस खड़े हुए हैं।।

कि आयी आंधी इक रोज़ कयामत की,दरख़्त 
जो जवां थे, नौसीखिए थे, सब ढह गए हैं।
हुनरमंद, तजुर्बेकार, और जो काबिल थे
दरख़्त, फकत वही खड़े हुए है।।


किशोरी लाल

©kishori lal bror #शायरी #कविता #नज्म #ख्याल 

#findyourself

शायरी कविता नज्म ख्याल findyourself