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मोहब्बत है इसलिये रज़ा देता हूँ। नहीं तो गलतियों की

मोहब्बत है इसलिये रज़ा देता हूँ।
नहीं तो गलतियों की में सज़ा देता हूँ।

इश्क़ के तार्रुफ़ में अज़ा देता हूँ।
जो मुकम्मल ना हो उसको कज़ा कहता हूँ।

तफशीश में होते है सब क्यों रोज़ उनकी गली में जमा होता हूँ।
उन्हें क्या कहूँ के उसके लबों की लाली में बयां होता हूँ।

Shah Talib Ahmed #yaad #shahsahabpoetry #poetrybucket #latenightpoetry
मोहब्बत है इसलिये रज़ा देता हूँ।
नहीं तो गलतियों की में सज़ा देता हूँ।

इश्क़ के तार्रुफ़ में अज़ा देता हूँ।
जो मुकम्मल ना हो उसको कज़ा कहता हूँ।

तफशीश में होते है सब क्यों रोज़ उनकी गली में जमा होता हूँ।
उन्हें क्या कहूँ के उसके लबों की लाली में बयां होता हूँ।

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